भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक गीत / ज्यून तकामी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 7 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=ज्यून तकामी |संग्रह=पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब / ज्...)
|
वह पुराना गीत जो हम गाते थे स्कूल में
बच्चे गा रहे हैं सुरीली आवाज़ में
मेरी आँखों में आँसू उतर आते हैं
रेडियो पर यह गीत सुनकर
स्मृति में झलकने लगते हैं बच्चों के सफ़ेद चेहरे
जिनके साथ मैं भी कभी गाता था यह गीत
बच्चे कोशिश कर रहे हैं पलकें न झपकाने की
सुनहरी मछलियों के तरह खोलते हैं अपने छोटे-छोटे मुँह
उनकी पतली सफ़ेद गरदनों पर दिखाई नहीं देता उनका टेंटुआ
जब छोटे थे हम और गाते थे
साथ-साथ बजाती थी हारमोनियम
लम्बे घाघरे वाली वह टीचर
झंडारोहण होता था और मिठाई बाँटी जाती थी
मैं स्मृति में डूबा था
और इस बीच
बच्चों ने शुरू किया नया गीत
जो हमारे उन दिनों में गाया नहीं जाता था