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हत्यारे / संजय कुंदन
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अब शहर में
सबसे सुरक्षित थे हत्यारे
इसलिए होड़ लग गई थीं
उनके प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने की
हत्या के पक्ष में
ऐसी-ऐसी दलीलें
दी जाने लगी थीं कि चकित थे हत्यारे
जो सबसे ज़्यादा डरते थे हत्यारों से
उन्होंने कहा -- हत्यारों से डरना कैसा
वे तो रक्षक हैं हमारी संस्कृति के
इतिहासकारों ने सप्रमाण कहा
हत्याओं से ही बदला है इतिहास
धर्माधिकारियों ने एक स्वर में कहा
धर्म की रक्षा के लिए
तो ज़रूरी हैं हत्याएँ
लोग चाहते थे कि हत्यारों की तरह दिखें
एक आदमी ने तो हत्यारा बनने की ठान ली
पर वह किसी को मार न पाया
उसने सोचा सबसे आसान है
अपने आप को मार डालना
और उसने ऐसा ही किया
सुरक्षित होने के लिए ।