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हम जियें या न जियें / ब्रजमोहन

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हम जियें या न जियें

जो लोग कल को आएंगे

हम उनको क्या दे जाएंगे

ये बात दिल में है अगर

ऎ दोस्त कुछ तो कर गुज़र...ऎ दोस्त कुछ तो कर गुज़र


ढल रहा है दिन तो क्या

ये रात भी ढलेगी कल

तू आज इस अंधेरी रात में मशाल बन के जल

तू चल किसी भी रास्ते

नई सुबह के वास्ते

ख़ुद ही बना के रास्ता तू ही दिखा नई डगर...


तू देख पंछियों की तरह उड़ के सारा आसमान

देख हर दरख़्त पर से घोंसलों के दरमियान

देख हर दरख़्त को

ताज और तख़्त को

तू देख चिमनियों के बीच में धुआँ-धुआँ शहर...


गुज़र गया जो कल तू उस पे इस तरह न हाथ मल

दिल के हर गुबार को न दिल में इस तरह कुचल

तू सिर्फ़ ईंट है तो क्या

नई इमारतें उठा

तू एक बार देख उठ के देख अपने पाँव पर...