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ख़ून की कमी / एकांत श्रीवास्तव

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टीकाटीक दोपहर में

भरी सड़क

चक्कर खा कर गिरती है रुकमनी

ख़ून की कमी है

कहते हैं डाक्टर


क्या करे रुकमनी

ख़ुद को देखे कि तीन बच्चों को

पति ख़ुद मरीज़

खाँसता हुआ खींचता रिक्शा

आठ-आठ घरॊं में झाड़ू-बरतन करती रुकमनी

चक्करघिन्नी-सी काटती चक्कर


बच्चों का मुँह देखती है

तो सूख जाता है उसका ख़ून

पति की पसलियाँ देखती है

तो सूख जाता है

काम से निकाल देने की

मालकिनों की धमकियों से

तो रोज़ छनकता रहता है

बूंद-बूंद ख़ून

बाज़ार में चीज़ों की कीमतों ने

कितना तो औटा दिया है

उसके ख़ून को


शिमला सेब और देशी टमाटर से

तुम्हारे गालों की लाली

कितनी बढ़ गई है

और देखो तो

कितना कम हो गया है यहाँ

प्रतिशत हीमोग्लोबिन का


शरीर-रचना विज्ञानी जानते हैं

कि किस जटिल प्रक्रिया से गुज़र कर

बनता है बूंद भर ख़ून शरीर में

कि जिसकी कमी से

चक्कर खाकर गिरती है रुकमनी


और कितना ख़ून

तुम बहा देते हो यूँ ही

इस देश में

जाति का ख़ून

धर्म का

भाषा का ख़ून ।