भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँझ के साँचे बोल तिहारे / कुम्भनदास
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:59, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुम्भनदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)
साँझ के साँचे बोल तिहारे।
रजनी अनत जागे नंदनंदन आये निपट सवारे॥१॥
अति आतुर जु नीलपट ओढे पीरे बसन बिसारे।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर भले वचन प्रतिपारे॥२॥