भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारो दान देहो गुजरेटी / कुम्भनदास

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:00, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुम्भनदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारो दान देहो गुजरेटी।
बहुत दिनन चोरी दधि बेच्यो आज अचानक भेटी॥१॥
अति सतरात कहा धों करेगी बडे गोप की बेटी।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनध्र भुज ओढनी लपेटी॥२॥