भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि / कृष्णदास

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्णदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि ता मधि लै संग राधा बैठे गिरिधरनलाल।
चूनरी की बांधि पाग अंग बागो चूनरी को उपरेना कंठ हीरा हार मोती माल॥१॥
स्याम चूरी हरित लहँगा पहरि चूनरि झूमक सारी मानो गनगौर बनी ऐन मेन कीरति बाल ।
कृष्णदास पिय प्यारी अपने कर दरपन लै मुख देखत बार बार हँसि हँसि भरि अंक जाल॥२॥