भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विकास री गंगा / परमेश्वर लाल प्रजापत

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 17 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वर लाल प्रजापत |संग्रह=मंड...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विकास री गंगा अर
कादै री नाळी
चालै अड़ो-अड़।
गंगा मांय खावो खळखोटो
गात निरमळ होय जावै
गरीबी रो मैल धुप जावै
पण चेतो राखो
उण नाळै मांय
पग नीं पड़ जावै।
इण नाळै री भींत
घणी तिसळणी
नेड़ै जायां पड़्यां सरै
पड़्यां पछै
निसरणो घणो ओखो।
इण खातर
जुवान भायां अर बैनां!
मानो म्हारो कैवणो
इण नाळै रै लगाद्यो
हिम्मत अर थावस रो डाटो
अर विकास री गंगा नैं
बैवण द्यो आपरै
तेज वेग सूं।
खावण द्यो गोता
अर न्हावण द्यो इण मांय
आपणै समाज रा
पांगळा, आंधा, बै’रा, गूंगा
मिनखां नैं,
होवण द्यो चंगा
डील अर मन सूं।