दन्तकथा / शिरीष कुमार मौर्य
प्राचीन मिस्र के राजाओं-रानियों की
ममियों में दन्तक्षय की शिनाख़्त कर ली गई
पता कर लिया गया कि क्लियोपेट्रा से सहवास के दिनों में
जूलीयस सीज़र के दाँतों की हालत ख़राब थी
सिकन्दर महान् की तो भरी जवानी में दुखती थी दाढ़
मिस्वाक बहुत था
पर ऑटोमन साम्राज्य के शासकों के दाँतों में
फिर भी रहता था दर्द
चन्द्रगुप्त मौर्य के दाँत स्वस्थ और मज़बूत थे
पर कहते हैं पता नहीं क्यों एक साथ झड़ गए
सड़सठ की उम्र में
देवानांप्रिय अशोक के दँतों से ख़ून रिसता था
पता नहीं ख़ुद का या कलिंग का
पृथ्वीराज चौहान शरीर और इरादों से तो
बलशाली था
पर आचरण और दाँतों से कमज़ोर
यूं सत्ताओं और सभ्यताओं के दाँतों की भी एक कथा भयी
मनुष्यता की रातों में कभी सुनाई गई
कभी छुपाई गई
इधर भरपूर पैने और चमकीले हुए हैं दाँत
और भरपूर से भी अधिक विकसित ज्ञान
कई-कई सुविधाजनक स्तरों वाला यथार्थ
हज़ारों साल पुरानी सँस्कृ्तिक विरासतें
अब चबा ली गईं
खा लिया गया इतिहास
के-नाइन और मोलर के बीच की दरारों में
कहीं
अब भी फँसे हैं इराक़ और अफ़गानिस्तान
उधर एक मुख है क्यूबा का
सिगार के धुँए से पीले पड़े दाँतों के साथ विहँसता ही जाता है
उसे यथार्थ के किस स्तर पर रखें
सुघड़ सुफ़ैद उन दाँतों की समझ में नहीं आता है ।