भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हों तो एक नई बात सुन आई / सूरदास
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} {{KKAn...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हों तो एक नई बात सुन आई।
महरि जसोदा ढोटा जायो, आंगन बजत बधाई ॥१॥
कहिये कहा कहत नहि आवे रतन भूमि छबि छाई ।
नाचर बिरध तरुण अरु बालक गोरस कीच मचाई ॥२॥
द्वारें भीतर गोप ग्वालन की वरनों कहा बढाई ।
सूरदास प्रभु अंतरयामी, नंदसुवन सुखदाई ॥३॥