Last modified on 21 मई 2014, at 13:54

दरसन बिना तरसत मोरी अखियां / सूरदास

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan}} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरसन बिना तरसत मोरी अखियां ॥ध्रु०॥
तुमी पिया मोही छांड सीधारे फरकन लागी छतिया ॥द०॥१॥
बस्ति छाड उज्जड किनी व्याकुल भई सब सखियां ॥द०॥२॥
सूरदास कहे प्रभु तुमारे मिलनकूं ज्युजलंती मुख बतिया ॥द०॥३॥