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कल फिर वह भिक्षुक आया था / त्रिलोचन

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कल फिर वह भिक्षुक आया था जो शाहों की

भाषा में बोला करता है । उसकी ऎसी

आदत ही है । सुनने वाले ऎसी वैसी

बातें आपस में करते हैं । वह राहों की

सारी बातें समझ चुका है । उसको इन की

चिन्ता तिल भर नहीं । जानता है वह रस्ते

ढो कर उन्हें छोड़ देते है आख़िर सस्ते

ठोकर सदा लगाने में है चूक न' जिन की ।

छोटे बड़े अमीर ग़रीब द्वार पर सब के

जाता है, चिल्लाता है--'मेरा दे जाओ

अपना ले जाओ ।' सूने में मिलो, 'सुनाओ'

कहता है, हँसता है, 'राह देखना अब के

द्वार तुम्हारे आऊंगा बन्दा हूँ उसका ।'

बुझती बाती स्नेह सहित देता है उसका ।