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नागा साधु / राजेन्द्र जोशी

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कोई सरोकार नहीं
तुम्हारें मेल-मिलाप का
कुंभ मेलो में मिलते हो
या हरकी पौड़ी
ब्रह्म कुंड पर
अपने में रहते हो मदमस्त
निर्वस्त्र-निर्गुण, महादेव के अनुचर हो
हाथों में त्रिशूल कमण्डल
अस्त्र-शस्त्र लिए बगल में
कंदराओं में धूनी रमाते
कुंभ से पहले कभी न मिलते
अखाड़ों के सैनिक हो
अलमस्त रहकर
नागा साधु कहलाते हो