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पर्वत की दुहिता / त्रिलोचन

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आने दो, आने दो, जनता को मत रोको,

पर्वत की दुहिता है, कब रुकने वाली है,

पथ दो, प्याऊ बैठा दो, चलते मत टोको,

बलप्रयोग देख कर कब झुकने वाली है,

हार थकन से क्या ये धुन चुकने वाली है,

रेल कसी है, बसें भरी हैं, बैलगाड़ियाँ

लदी फंदी हैं; सिद्धि कहाँ लुकने वाली है

गिरि गह्वर कन्दरा गहन वन झाड़ झाड़ियाँ

सर सरिता निखात सागर का सार खाड़ियाँ

कहाँ मनुष्य नहीं पहुँचा है; पृथ्वी तल में

खान खोद कर जा पैठा, दुर्गम पहाड़ियाँ

उसे सुगम हैं, सारा व्योम नाप दे पल में ।


आने दो यदि महाकुम्भ में जन आता है,

कुछ तो अपने मन का परिवर्तन पाता है ।