बीस साल बाद / जीवनानंद दास
बीस साल बाद अगर उससे मुलाक़ात हो जाए
शाम की पीली नदी किनारे कौवे जब ढूँढ़ रहे हों घर
घास-पात जब हो रहें हों नरम और हल्के
जब कोई न हो धान के खेत में
कहीं भी आपा-धापी मची न हो
हंसों और चिड़ियों के घोंसले से गिर रहें हो तिनके
रात, मनियार के घर शीत और शिशिर की नमी झर रही हो ।
जीवन बीत गया है बीस साल पार --
ऐसे में तुम्हे पा जाऊँ मीठी राह एक बार ?
हो सकता है आधी रात को जब चाँद उगा हो
शिरीष या जामुन, झाऊ या आम के पत्तों के गुच्छों के पीछे
काले-काले कोमल डाल-पात से झाँकती आ जाओ तुम ?
क्या बीस साल पहले की तुम्हें कुछ भी नहीं याद ?
जीवन कट गया है बीस साल पार..
और ऐसे में अगर मुलाक़ात हो जाए एक बार ?
तभी झपट कर, उल्लू की तरह झपट पडो, तो..
बबलू की गली के अन्धकार में या
अश्वथ के झरोंखों में...
कहाँ छुपाऊँगा तुमको ?
पलक झपकते ही --
सुनहली चील जिसे शिशिर में शिकार कर ले गई थी....
बीस साल बाद इस कोहरे में
अगर उससे मुलाकात हो जाए...