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नवजात अश्वेत शिशु के जन्म पर-2 / पुष्पिता

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वह चुप है
और
खुश है
शिशु को वायलिन की तरह
अपने वक्ष से लगाये
नव-जीवन की धड़कनों के संगीत को
सुनने में व्यस्त है
उसकी साँसों की लय को
गुन और बुन रही है
अपने जीवन की लय में

शिशु की मुँदी पलकों को
अपनी प्रसव-पीड़ित थकी नयन-दृष्टि से
खोलने में लीन
अपनी कजरारी आँखों से
नवजात शिशु के चेहरे पर
बुरी नज़र से बचाने वाले काले टीके को
लगाने में आत्मलीन है.

वह सुनती है सिर्फ
नवजात शिशु की धड़कनें
जिसमें जान लेना चाहती है
उसका सर्वस्व.

वह अपने देहांश को
निरख रही है
और परख रही है
उसका तीन घंटे पहले पैदा हुआ शिशु
कितना है उसकी ही तरह
और कितना है अपने गोरे पिता की तरह
क्या आँखों का रंग है नीला और केशों का रंग सुनहला
या उसकी ही तरह हैं काली आँखें और काले केश

जानती है वह
अश्वेत होने का दुःख
विश्व के विकसित और सुसंस्कृत समाज में भी
संभ्रांत होने के बावजूद
दास और कुली होने की परछाईं
घुली रहती है उसके आकर्षण और ईमानदार व्यक्तित्व में
धनाढ्य होने पर भी
उसका पिता भोगता रहा है यूरोप और अमेरिका में
अपने पुरखों के दास और कुली होने का दंश
स्वयं के सरकारी महकमें की सलाहकार होने पर भी
गोरों की नीली आँखों से
झेलती रही है खुद के दुरदुराने का दुःख .