भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतीक्षा के स्वप्न-बीज / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रतीक्षा में बोए हैं स्वप्न-बीज

उड़ते सेमल के फाहों को
समेटा है मुट्ठी में
विरोधी हवाओं के बीच।

आँसू ने धोई है -
मन की चौखट
और प्राणवायु ने
सुखाई है - आँखों की जमीन।

अधरों ने
शब्दों से बनाई है अल्पना
और धड़कनों ने
प्रतीक्षा की लय में
गाए हैं - बिल्कुल नए गीत।

प्रतीक्षा में होती है
आगमन की आहटें
पाँवों की परछाईं
हथेलियों की गुहारती पुकार
आँखों के आले में
प्रिय के आने का उजाला समाने लगता है
और एक सूर्य-लोक दमक उठता है।

प्रतीक्षा के सन्नाटे में
कौंधती है आगमन-अनुगूँज
शून्यता में तिर आती हैं
पिघली हुई तरल आत्मीयता की लहरें।

समाने लगता है
अपने भीतर अमिट संसार
आँखों में...साँसों में
पसीज आई हथेली में।

आँखों की पृथ्वी पर
होती हैं भाव-ऋतुएँ
नक्षत्र से निखरते हैं
तुम्हारे नयन निष्पलक

चुपचाप परखती हैं आँखें
अलौकिक प्रभालोक
तुम्हारे प्रणय का
अक्षय आकांक्षा-वलय।