भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देह विदेह / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

दो गोलार्धों में
बाँट दिए जाने के बावजूद
पृथ्वी भीतर से कभी
दो ध्रुव नहीं होती
मेरी-तुम्हारी तरह

तुम्हारी साँसें
हवा होकर
हिस्सा होती हैं मेरी
मेरे बाहर और भीतर की प्रकृति की
सृष्टि बनती है तुमसे

तुम्हारा होना
मेरे लिए सूर्य-प्रकाश है
तुम्हारा वक्ष
धरती बनकर है मेरे पास

तुम्हारे होने से
पूरी पृथ्वी मेरी अपनी है
घर की तरह

चिड़ियों की चह-चह में
तुम्हारे ही शब्द हैं
मेरी मुक्ति के लिए

मुक्ति के बिना
शब्द भी सहचर नहीं बनते हैं

मुक्ति के बिना
सपने भी आँखों के घर में नहीं बसते हैं

मुक्ति के बिना
प्रकृति का राग भी
चेतना का संगीत नहीं

मुक्ति के बिना
आत्मा नहीं समझ पाती है
प्रेम की भाषा

मुक्ति के बिना
सब कुछ देह तक सीमित रहता है
मुक्ति में ही होती है देह विदेह।