भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अवगाहन के लिए / पुष्पिता
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:20, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सेमल के फूल-सी
अनुभूति की मुट्ठी में
समेट लेना चाहती हूँ
प्रणय का संपूर्ण सुख
तुम्हारी हथेली थामकर।
प्रकृति का अनन्य सुख
जानने के लिए
देह से रिसकर
एक अनंत राग के
अवगाहन के लिए
तुम्हारे अपनेपन में
समाती हूँ चुपचाप
कभी तुम्हारे विश्वास की प्रणय-घाटी में
कभी तुम्हारे आत्मीय अधर के अमृत-कुंड में।
मेरे ही प्राण
तुम्हारे प्राण बनकर
धड़कते हैं अब
मेरे वक्ष-भीतर
तुम्हारी छवि छूती है मेरी मन-छाया
तुम्हारी हुई धड़कनों में
बजती है तुम्हारी ही धुन
जैसी कृष्ण ने बजायी थी
आत्मा के प्रणय-नाद के निनाद के लिए।