भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वाद के अभाव में / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:12, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह नहीं हँस पाती है अपनी हँसी
ओंठ भूल गए हैं
मुस्कराहट का सुख

नहीं जागती है अब वैसी भूख
स्वाद के अभाव में

आँखें नहीं जानती हैं नींद
सपने में भी रोती हैं
काँप-सिहरकर

एक पेड़
जैसे जीता है
माटी के भीतर
अपनी जड़ें फेंक कर
जीने का सुख
औरत नहीं जान पाती है वैसे ही

एक नदी
जैसे बहती है
धरती के बीच
औरत बहते हुए भी
नहीं जान पाती है वह सुख।