भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीड़ के भीतर / पुष्पिता

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पवन
छूती है नदी
और लहर हो जाती है।

पवन
डुबकी लगाती है समुद्र में
और तूफ़ान हो जाती है।

पवन
साँसों में समाकर
प्राण बन जाती है
और
देखने लगती है सबकुछ
आँखों में आँखें डालकर
और चलने लगती है
भीड़ के भीतर।