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अनन्य राग / पुष्पिता

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विदेश में
सूरीनाम के भारतवंशियों बीच
ढो लाई हूँ भारत देश
अपनी मन-देह में
देश का मातृत्व प्रेम
देह-माटी में है गंगा माटी

स्मृतियों की अँजुली में है
स्वदेशी बादल
समाहित है मेघदूत
मेघदूत में
कभी कालिदास
कभी नागार्जुन कवि

सूर्य के ज्योति-कलश में है
रघुवंश का तेज-पुंज
सूरीनाम के भारतवंशियों की भक्ति में
स्मरण आते हैं कुमार गन्धर्व
                   जसराज
                   भीमसेन जोशी
कृष्ण की भक्ति में
पहुँचता है चित्त वृन्दावन
राम की भक्ति में चित्रकूट
शिव-शंकर के उपासकों बीच
ह्रदय पहुँचता है काशी तीरे और उज्जैन

सूरीनाम में
बसे हुए भारत में
बसाती हूँ मैं स्मृतियों का भारत
यहाँ के पुरखों में
आत्मा लखती है अपने पुरखे।