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शब्दों से झोली भर देते / राजेन्द्र गौतम

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धन्य-धन्य तुम दाता हो
शब्दों से झोली भर देते ।

पत्थर तोड़ रहे
हाथों को
शब्दों का मरहम देते
पीठ-पेट मिल
एक हुओं को
शब्दों का भोजन देते
किसी ‘निराला’ को
कहने का
कुछ भी कब अवसर देते ।

शब्दों के
कम्बल में लिपटा
‘हल्कू’ खेतों में सोए
‘होरी’ के भी
सभी दलिदर
शब्दों के जल ने धोए
शब्द-दक्षिणा से ही उसका
स्वर्ग सुरक्षित कर देते ।

राजपथों से
कभी मंच से
मुहरें रोज लुटाते हो
रक्त-दुर्ग की
प्राचीरों से
रजत-स्वर्ण बिखराते हो
शब्दों से तुम
एक-एक को
पानी-पानी कर देते ।