भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुज़रता वक़्त / माया एंजलो
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 31 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माया एंजलो |अनुवादक=मनोज पटेल |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुम्हारी चमड़ी जैसे सुबह
मेरी जैसे शाम ।
एक प्रतीक है उस शुरूआत का
जिसका अन्त निश्चित है ।
दूसरी, उस अन्त का
जिसकी शुरूआत निश्चित है ।