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बूढ़े लोगों को हँसी / माया एंजलो

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खीसें निपोर कर ख़ुश हैं वे
होंठों को इधर-उधर हिला कर
मस्तक के बीच रेखाओं को
घुमाते हुए. बूढ़े लोग
बजने देते हैं अपने पेट
ढोलकी की तरह
उनकी चिल्लाहटें उठकर बिखर जाती हैं
जैसे भी वे चाहते हैं ।
बूढ़े लोग हँसते हैं, तो दुनिया को मुक्त कर देते हैं ।
वे धीरे-धीरे घूमते हैं, कुटिलता से जानते हैं
सबसे उम्दा और दुखद
यादें ।
लार चमकती है
उनके मुँह के कोनों पर,
नाज़ुक गर्दन पर
उनके सिर काँपते हैं, मगर
उनकी झोली
यादों से भरी है ।
जब बूढ़े लोग हँसते हैं, वे सोचते हैं
व्यथाहीन मौत के भरोसे पर
और खुले दिल से माफ़ कर देते हैं
जीवन को उनके साथ जो हुआ
उसके लिए ।