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पाखी / निज़ार क़ब्बानी

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ओ ! हरे पाखी
जबसे हुए हो तुम
मेरे प्रियतम

तबसे
ईश्वर विराजता है
वहीं ऊपर
आकाश में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह