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सुना है अर्बाब-ए-अक़्ल-ओ-दानिश, हमें यूँ दाद-ए-कमाल देंगे / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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सुना है अर्बाब-ए-अक़्ल-ओ-दानिश हमें यूँ दाद-ए-कमाल देंगे
"जुनूँ के दामन से फूल चुन कर ख़िरद के दामन में डाल देंगे!"

ज़रा बतायें कि आप कब तक फ़रेब-ए-हुस्न-ओ-जमाल देंगे
सुकूं के बदले में तुहफ़ा-ए-ग़म, क़रार ले के मलाल देंगे?

हम अपने दिल से ख़याल-ए-दैर-ओ-हरम को ऐसे निकाल देंगे
तमाम अज्ज़ा-ए-कुफ़्र-ओ-इमां बस एक सजदे में ढाल देंगे!

जिन्हें तमीज़-ए-वफ़ा नहीं है, जिन्हें शऊर-ए-जुनूँ नहीं है
भला वो किस तरह राह-ए-ग़म में हिसाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल देंगे?

ज़बां की रंगीं-नवाईयों से, बयां की जल्वा-तराज़ियों से
निगार-ए-उर्दू को हर घड़ी हम खिराज-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल देंगे!

तुम्हें है क्यों अश्क-ए-ग़म पे हैरत, यही तो होता है आशिक़ी में
सवाल अगर दिल-फ़िगार होगा,जवाब भी हस्ब-ए-हाल देंगे!

खुमार-ए-बादा,ख़िराम-ए-आहू,निगाह-ए-नर्गिस,नवा-ए-बुलबुल
किसी ने इन का पता जो पूछा तो हम तुम्हारी मिसाल देंगे!

वो एक लम्हा दम-ए-जुदाई जो ज़ीस्त का ऐतिबार ठहरा
उस एक लम्हे ने जो दिया है, कहाँ ये सब माह-ओ-साल देंगे?

न इनकी बातों में आना "सरवर"!ये अह्ल-ए-दुनिया हैं फ़ित्ना-परवर
हज़ार बातें बना बना कर तुम्हें ये दम भर में टाल देंगे!