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’सरवर’ जिगर के दाग़ नुमायां न कीजिए / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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"सरवर"! जिगर के दाग़ नुमायां न कीजिए
यूँ कीजिए कि शिकवा-ए-जानां न कीजिए!

हसरत, मलाल,ख़्वाहिश-ओ-अरमां न कीजिए
ये कीजिए तो होश का सामां न कीजिए!

हर रोज़ रोज़-ए-हश्र है हर शाम शाम-ए-ग़म
इतना तो इस ग़रीब पर एहसां न कीजिए!

ऐसा न हो कि अश्क-ए-नदामत निकल पड़ें
इस साअत-ए-विसाल को अर्ज़ां न कीजिए!

बढ़ कर वसूल कीजिए ज़माने से हर हिसाब
या फिर शिकायत-ए-ग़म-ए-दौरां न कीजिए

दिल को संभाल रखिए, अमानत है इश्क़ की
लुट जाए गर तो फिर कोई अरमां न कीजिए

मानिन्द-ए-बू-ए-दोस्त मैं, अपने वुजूद में
हूँ इक ख़याल मुझको परेशां न कीजिए १

हम बन्दगान-ए-इश्क़ हैं अपनी मिसाल आप
हम से सवाल-ओ-पुर्सिश-ए-इस्याँ न कीजिए

इर्फ़ाने-इश्क़ आप हाय इर्फ़ान-ए-ला-इलाह!
इस से ज़ियादा ख़्वाहिश-ए-ईमां न कीजिए

"सरवर" को ख़ामशी ही पयाम-ए-हयात है
कुछ कह के ज़िन्दगी को पशेमां न कीजिए