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जिगर की, दिल की, निगाहों की, जिस्म-ओ-जां की ख़बर / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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जिगर की,दिल की,निगाहों की,जिस्म-ओ-जाँ की ख़बर
रख़्ख़ूँ तो रख़्ख़ूँ मैं आख़िर कहाँ कहाँ की ख़बर?

क़फ़स नसीब हूँ, क्यों कर हो आशियाँ की ख़बर?
भला ज़मीं को भी होती है आस्माँ की ख़बर?

मैं अपने पास से गुज़रा तो यह हुआ महसूस
कि कारवाँ को नहीं गर्द-ए-कारवाँ की ख़बर!

जुनूँ ने वाक़िफ़-ए-इस्लाम कर दिया वरना
किसे थी फ़ुर्सत-ए-सज्दा,किसे अज़ाँ की ख़बर?

ख़ुदा को भूल गया मैं पये खु़द आगही
न इस जहाँ की ख़बर है, न उस जहाँ की ख़बर!

जो हो सके तो कहो तूर-ए-इश्क़-सामां की
जहाँ पे होश उड़े थे मिरे, वहाँ की ख़बर!

ख़िज़ाँ है गुलशन-ए-हस्ती में ख़ुद से मेहरूमी
बहार क्या है? इसी क़र्या-ए-अमाँ की ख़बर!

ये सर बुरीदा तमन्ना, ये ख़ून ख़ून उम्मीद
सदा ब सहरा है इक, एक इम्तहाँ की ख़बर!

वो साअत-ए-गुजराँ हो कि लम्हा-ए-मौजूद
तमाम हालत-ए-यक-उम्र-ए-रायगाँ की ख़बर

जिसे भी देखिये था मह्व-ए-बज़्म आराई
किसी को कब रही "सरवर" से नुक़्ता-दां.की ख़बर?