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कुछ इस तरह से तसव्वुर में बे-हिजाब हुए / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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कुछ इस तरह से तसव्वुर में बे-हिजाब हुए
तमाम आलम-ए-हिज्राँ ख़्याल-ओ-ख़्वाब हुए

ख़ुद अपने हाथों सर-ए-बज़्म बे-नक़ाब हुए
हम आप अपने सवालात का जवाब हुए!

तमाश-ए-दम-ए-हस्ती फ़क़त फ़साना था
हुज़ूर-ए-कू-ए-ख़ुदी हम जो बारयाब हुए

दरीदा बन्द-ए-जिगर, तार-तार दामन-ए-दिल
हुए तो इश्क़ में इस तरह से ख़राब हुए

सुबू-ए-हुस्न-ए-तख़य्युल छलक छलक उठ्ठा
हरीम-ए-शौक़ में हम जब भी बारयाब हुए

हमें अना ने दिखाई कुछ ऐसी राह कि बस!
जो ख़ुद को सोचा तो हम ख़ूब आब-आब हुए!

हम ऐसे कब थे कि आज़ाद-ए-आरज़ू रहते
ग़म-ए-हयात हुए और बे-हिसाब हुए

शिकस्ता-हाल-ओ-परीशाँ तो यूँ भी थे "सरवर"
तुम्हारे ज़िक्र से कुछ और भी ख़राब हुए!