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रसन ये क्यों है बताओ ये दार कैसा है / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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रसन ये क्यों है, बताओ ये दार कैसा है?
ये इह्तिमाम सर-ए-कू-ए-यार कैसा है?

तिरी जफ़ा पे मुझे ऐतिबार कैसा है?
गुलों से राबिता -ए-नोक-ए-ख़ार कैसा है?

कहाँ गए वो ज़माने, वो ख़ल्वतें,वो लुत्फ़?
नज़र चुराना सर-ए-रहगुज़ार कैसा है?

ख़्याल-ओ-फ़िक्र बग़ावत पे क्यों हैं आमादा?
मिरे वुजूद में ये इज़्तिरार कैसा है?

मैं अपनी ज़ात से बाहर हूँ राँदा-ए-दरगाह
फिर आख़िर उस का मुझे इन्तिज़ार कैसा है?

सबा! बता ये ज़रा तू कहाँ से आई है?
ख़िज़ाँ में आज यह रंग-ए-बहार कैसा है?

जहाँ पे होश उड़े हैं, वहाँ की कुछ तो कहो
हमारे बाद वो शहर-ए-निगार कैसा है?

ख़लिश यही है पस-ए-लज़्ज़त-ए-ख़ुद-आगाही
मिरी ख़ुदी में निहाँ अक्स-ए-यार कैसा है?

फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-हुस्न-ए-ख़ुलूस हूँ वरना
ख़िज़ाँ-गज़ीदा यक़ीन-ए-बहार कैसा है?

वही ख़याल, वही आरज़ू, वही हसरत
तुझे ये रोग दिल-ए-सौगवार कैसा है?

कहाँ गया वो तिरा शौक़-ए-बज़्म-आराई?
तिरी ग़ज़ल का वो "सरवर"! वकार कैसा है?