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जफ़ाएं देख लिया बे-वफ़ाईयां देखीं / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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"जफ़ायें देख लियाँ, बे-वफ़ाईयाँ देखीं "
तिरे ग़ुरूर की सब बे-रिदाईयाँ देखीं

बुराईयों में भी तेरी भलाईयाँ देखीं
ख़ुदी का ध्यान किया, ख़ुद-नुमाईयाँ देखीं!

जब आईयाँ तिरी यादें हमें शब-ए-हिज्राँ
ख़्याल-ओ-ख़्वाब की बे-दस्त-ओ-पाईयाँ देखीं

तनिक इधर भी कभू चश्म-ए-नाज़ से देखो
इक उम्र गुज़री की बस कज-अदाईयाँ देखीं

मियाँ! कुछ अपने ताईं देख भाल तो लेते
ये क्या कि औरों में सारी बुराईयाँ देखीं

चले थे राह-ए-वफ़ा में जुदे-जुदे हम लेक!
ग़ुरूर-ए-इश्क़ की सब ख़स्त-पाईयाँ देखीं

कभू किसू ने सुनी हैं हमारियाँ साहिब?
हमेशा सब ने हमीं में बुराईयाँ देखीं

कभू न आया तुझे आशिक़ी का ढब "सरवर"
कि जब भी देखीं तिरी ख़ुद-सिताईयाँ देखीं!