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बता ये जज़्ब-ए-बे-इख़्तियार क्या होगा? / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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बता ये जज़्ब-ए-बे-इख़्तियार….

बता ये जज़्ब-ए-बे-इख़्तियार क्या होगा?
अगर वो हम से हुआ शर्मसार क्या होगा?

मिरी वफ़ाओं को संग-ए-मज़ार क्या होगा?
बहार जा चुकी, ज़िक्र-ए-बहार क्या होगा?

बुरा हो तेरा दिल-ए-बेक़रार! क्या होगा?
रहा न ख़ुद पे हमें इख़्तियार, क्या होगा?

न जाने कितनी बहारें गुज़र चुकीं इस पर
जुनूँ का फ़ैसला अब की बहार क्या होगा?

ये चश्म-ए-नम, ये ख़मोशी, ये आह-ए-नीम-शबी
ज़ियादा इस से भला ज़िक्र-ए-यार क्या होगा?

अगर है सब्र-तलब सुब्ह-ए-आरज़ू इतनी
मैं डर रहा हूँ शब-ए-इन्तिज़ार क्या होगा?

तुम्हारा पास-ए-गिरेबां तो हमने देख लिया
मआल-ए-पैरहन-ए-तार-तार क्या होगा?

रखा न दीन का उल्फ़त ने और न दुनिया का
कोई भी मुझ सा ग़रीब-उल-दयार क्या होगा?

इधर कशाइश-ए-उल्फ़त, उधर ग़म-ए-दुनिया
दिल-ए-ग़रीब का अन्जाम-ए-कार क्या होगा?

किसी को ग़म नही "सरवर"! तिरा ज़माने में
अब इस से बढ़ के भला कोई ख़्वार क्या होगा?