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पानी / प्रेमशंकर शुक्ल
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पानी है तो धरती पर संगीत है :
झील-झरनों-नदियों-समुद्र का,
घूँट का !
पानी है तो बानी है
पदार्थ हैं इसलिए कि पानी है
और गूँगे नहीं हैं रंग
पानी भी जब पानी माँग ले
तो समझो कीच-कालिख की
गिरफ़्त में है वक़्त
ज़िन्दगानी को जो नोच-खाय
तो जानो उसके आँख का पानी
मर गया !
भर गया जो गला
सुन कर चीख़-पुकार
वह पानी है !
पानी जो दौड़-दौड़ कर
पृथ्वी का चेहरा
सँवारता रहता है !