भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीढ़ियों का पानी / नंद भारद्वाज
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 2 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंद भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया)
इस सनातन सृष्टि की
उत्पत्ति से ही जुड़ा है मेरा रक्त-संबंध
अपने आदिम रूप से मुझ तक आती
असंख्य पीढ़ियों का पानी
दौड़ रहा है मेरे ही आकार में
पृथ्वी की अतल गहराइयों में
संचित लावे की तरह
मुझमें सुरक्षित है पुरखों की आदिम ऊर्जा
उसी में साधना है मुझे अपना राग
मेरे ही तो सहोदर हैं
ये दरख्त ये वनस्पतियाँ
मेरी आँखों में तैरते हरियाली के बिम्ब
अनगिनत रंगों में खिलते फूलों के मौसम
अरबों प्रजातियां जीवधारियों की
खोजती हैं मुझमें अपने होने की पहचान.