भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम राम गा‌ओ संतो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 2 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरवी-ताल दादरा)

राम राम गा‌ओ संतो, राम राम गा‌ओ।
राम-नाम गा‌इ-गा‌इ रामको रिझा‌ओ॥
रामहिको नाम जपो, रामहिको ध्या‌ओ।
राम राम राम कहत प्रमुदित ह्वै जा‌ओ॥
राम राम सुनि-सुना‌इ हिय अति हुलसा‌ओ।
राम राम राम रटत सब बिधि सुख पा‌ओ॥
राम-नाम-मद्य पि‌ओ, विषय-मद भुला‌ओ।
राम-सु-रस पीय-पीय तन-सुधि बिसरा‌ओ॥
राम आदि, मध्य राम, राम अंत पा‌ओ।
राम अखिल जगतरूप राममें समा‌ओ॥