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तजो रे मन झूठे सुखकी आसा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग भूपाल-ताल तीन ताल)
तजो रे मन झूठे सुखकी आसा।
हरि-पद भजो, तजो सब ममता, छोड़ विषय-अभिलासा।
बिषयन में सुख सपनेहुँ नाहीं केवल मात्र दुरासा॥
कामिनि-सुत, पितु-मातु बंधु, जस कीरति सकल सुपासा।
छिन महँ होत बियोग सबन्ह ते कठिन काल जग नासा॥
छनभंगुर सब विषय, निरंतर बनत कालके ग्रासा।
इनमें जो कोउ फिर सुख चाहत सो नित मरत पियासा॥
प्रभु-पद-पदुम सदा अविनासी सेवत परम हुलासा।
मिलै परम सुख, घटै न कबहूँ, जिनके मन-बिस्वासा॥