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साधो, यह कैसा मोदी / महेंद्र नेह
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साधो, यह कैसा मोदी ।
जिसने दिया सहारा पहले उसकी जड़ खोदी ।
फ़सल घृणा की, फूटपरस्ती की गहरी बो दी ।।
नारे हैं जनता के, बैठा धनिकों की गोदी ।
कौन महावत, किसका अंकुश किसकी है हौदी ।।
विज्ञापन करके विकास की अर्थी तक ढो दी ।
नहीं मिला खेतों को पानी, धरती तक रो दी ।।
ख़ुद के ही अमचों-चमचों ने मालाएँ पो दीं ।
ख़ुद ही पहना ताज, स्वयं ही बन बैठा लोदी ।।