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झर झर पाका पान झड़ै / कन्हैया लाल सेठिया

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झर झर पाका पान झड़ै

अै देखी आंध्यां खेंखाती,
अै भिड्या रूंख रा बण साथी,
पण रूत रो धीमूं सो धक्को
अै सहलै आं री के छाती ?

होळै सी सैन करी करतां
अै डरता उपराथळी पड़ै
झर झर पाका पान झड़ै।

अै काल जका सिणगार बण्या,
बे आज रूंख रा भार बण्या,
दिन माठा आवै जकी बगत
बा भेळप राखै इण्यागिण्या,

धरती तो झेलै नहीं किस्यै,
बा बिल में भेळी हूं’र बडै़?
झर झर पाका पान झड़ै।

ओ जीणो मरणो सालीणो,
सुख दुख रो जाबक तथ झीणो,
के हंसणूं आं परा के रोणूं ?

बो तोड़ै पीळा पान जको
बो सागी कूंपळ नुंईं घड़ै,
झर झर पाका पान झड़ै।