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खेजड़लो / कन्हैया लाल सेठिया

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म्हौ मुरधर रो है सांचो
सुख दुख साथी खेजड़लो,
तिसां मरै पण छयां करै है
करड़ी छाती खेजड़लो,

आसोजां रा तप्या तावड़ा
काचा लोहा पिलघळग्या,
पान फूल री बात करां के
बै तो कद ही जळबळग्या,

सूरज बोल्यो छियां न छोडूं
पण जबरो है खेजड़लो
सरणै आय’र छियां पड़ी है
आप बळै है खेजड़लोः

सगळा आवै कह कर ज्यावै
मरू रो खारो पाणी है,
पाणी क्यां रो अै तो आंसू
खेजड़लै ही जाणी है,

आंसू पीकर जीणो सीख्यो
एक जगत में खेजड़लो,
सै मिट ज्यासी अमर रवैलो
एक बगत में खेजड़लो,

गांव आंतरै नारा थकग्या
और सतावै भूख घणी,
गाड़ी आळो खाथा हांकै
नारां था रो मरै धणी,

सिंझ्या पड़गी तारा निकल्या
पण है सारो खेजड़लो,
‘आज्या’ दे खोखां रो झालो
बोल्यो प्यारो खेजड़लो,

जेठ मास में धरती धोळी
फूस पानड़ो मिलै नहीं,
भूखां मरता ऊंठ फिरै है
अै तकलीफां झिलै नहीं,
इण मौके भी उण ऊंठा नै
डील चरावै खेजड़लो,
अंग अंग में पीड़ भरी पण
पेट भरावै खेजड़लो,

म्हारै मुरधर रो है साचो
सुख दुख साथी खेजड़लो
तिसां मरै पण छियां करै है
करड़ी छाती खेजड़लो।