बॉम्बे के लिये एक गीत / दिलीप चित्रे
मैंने वादा किया था तुमसे एक कविता का मरने से पहले
पियानो की कालिमा से हीरे उमड़ते चले आते हैं
टुकड़ा-टुकड़ा मैं अपने ही मृत पैरों पर गिरता हूँ
अपनी ध्वनिहीनता से छोड़ता हूँ संगीत की बन्दिश की तरह तुम्हें
मैं अपनी ज़िद्दी अस्थियों से बँधे तुम्हारे पुलों को खोलता हूँ
मुक्त करता हूँ आतुर धमनियों से तुम्हारी रेल की पटरियाँ
पुर्जा-पुर्जा खोलता हूँ तुम्हारी भीड़मय रिहाइशों और ध्यानमग्न मशीनों को
हटाता हूँ अपनी खोपड़ी में गड़े तुम्हारे मन्दिरों और वेश्यालयों को
तुम निकली मुझसे सितारों की शुद्ध सर्पिल रेख में
एक शवयात्रा बढ़ती हुई समय के अंत की तरफ़
अग्नि की असंख्य पँखुड़ियाँ निर्वस्त्र करतीं
लगातार बढ़ रहे तुम्हारे अँधेरे तने को
मैं हत्याओं और दंगों से निकल आता हूँ
मैं सुलगती जीवन-कथाओं से अलग हो जाता हूँ
मैं जलती भाषाओं की शय्या पर सोता हूँ
तुम्हारी ज़रूरी आग और धुएँ में तुम्हें ऊपर भेजता हुआ
टुकड़ा-टुकड़ा गिरता हूँ अपने ही पैरों पर
काले पियानो से हीरे उमड़ते चले आते हैं
कभी मैंने वादा किया था एक महाकाव्य का तुमसे
और अब तुमने लूट लिया है मुझे
बदल दिया है एक मलबे में
संगीत की यह बन्दिश ख़त्म होती है ।