भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मास्को, 1980 / दिलीप चित्रे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 16 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिलीप चित्रे |अनुवादक=तुषार धवल |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
क्रान्ति के छायाचित्रित शहर में
तिरेसठ वर्ष बाद मेरे पर्यटक मन पर
तेज़ाब की एक बूँद भी नहीं पड़ती
खाल भरे क्रान्तिकारी चिर निद्रा में सोए हैं
लम्बी कतार में श्रद्धालु दर्शन के लिए खड़े हैं
रेड स्क्वेयर पर मुझे नज़र आता है सिद्धिविनायक
क्रेमलिन के ताबूत और लाल तारे
कोरस गाते हैं देवदूत, ज़ार और कमिसार
जीर्ण चर्च के पास चुप खड़ीं बूढ़ी औरतें
गोभी का क्या भाव कविता की क्या क़ीमत
हृदय पर खिंचे कँटीले तारों को
वॉयलिन समझ कर बजाता है
यह प्रबल और भोले लोगों का समुदाय