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जवाहरलाल / कन्हैया लाल सेठिया

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एक नमूनूं राख्यो कुदरत
बो ही छेकड़ गमग्यो।

गिगन चालणी लियां बावळी
बैठी धरती चाळै,
करी डूंगरां री ढिगल्यां नै
आखी रात रूखाळै,

पण कद लादै हीरो भोळी
जको रेत में रमग्यो।

सूरजड़ै नै बैम बापड़ो
चांद घणूं घबरावै
निजर पडयां आ नहीं कठेई
म्हारै आळ लगावै,

पून हुई सचवादी बोली
कीं रो राम निसर ग्यो ?

लैरां रै हाथां में समदर
रतन अमोलक ल्यावै,
बीं उणियारै कोनी कोई
क्यां नै भरम गमावै,

बा सीपी ही और जवाहर
जीं री कूख जलमग्यो !