Last modified on 17 जून 2014, at 13:11

आगे है बबूल का जंगल / संजय चतुर्वेद

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन अघोर कुख्यात कबाड़ी,
थके-उनींदे मालकोंस में खेंचत राग पहाड़ी
सरहद पै विचारधारा की पतितपावनी झाड़ी
आगे है बबूल का जंगल करै शिकार खिलाड़ी
परमपूज्य मतिहार हरामी उस्तादों की बाड़ी
अर्धनारि दुस्साशन बैठा खींचै सबकी साड़ी
जै-जै धुनि चहुँ ओर, अकेले हमने हरकत ताड़ी ।