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पहेली-सा कुछ / राजेश्वर वशिष्ठ

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ऊँचा पहाड़ है अधनंगा-सा
जिसकी तलहटी में जमा हो गई हैं
टूट कर फिसली चट्टानें
पास ही बह रहा है एक उदास-सा झरना
जिसके किनारों तक पहुँच गई है ऊँचे पेड़ों की जड़ें

नीचे इस धूप सेंकते बुग्याल पर
हरी घास चर रही हैं भेड़-बकरियाँ
दूर सड़क के किनारे
अपनी लाठी से गडरिया खेल रहा है कोई खेल
किसी मेमने को कन्धे पर उठाए

पेड़ों के झुरमुट से
चुपके से निकलता है एक बाघ
झरने से पीता है कुछ घूँट पानी
किसी दबंग गुण्डे की तरह
उठाता है एक मेमना
और ग़ायब हो जाता है पर्वत कन्दराओं में
कुछ देर समवेत स्वर में
रुदन गीत गाती हैं भेड़-बकरियाँ
और गडरिया बजाने लगता है बाँसुरी

डर से काँप कर एक भेड़ जनती है बच्चा
अब गडरिया इस बच्चे को बिठा लेता है कन्धे पर
धीरे-धीरे पहाड़ से नीचे उतरती है साँझ
गडरिया आश्वस्त है
उतनी ही हैं उसकी भेड़-बकरियाँ
सुबह वह जितनी लेकर गया था चराने

आप जानते हैं इस गडरिए को ?