भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

के होवतो ? / कुंदन माली

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:04, 20 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन माली |संग्रह=जग रो लेखो / कुं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धिन्न धरा
थांने उपजाया
जे न्हीं
व्हेता आप
आखी मिनखाजूंण पे
किसी लागती छाप
मूंडो रंगता रेवता
देय-देय
गालां थाप
आप झेलता
जलम जलम
संताप।