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संका / कुंदन माली
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स्हैरां री सड़कां पे
रॉकेट री रफ्तार सूं
सरपट दौड़तां-दौड़तां
समाजवाद रो सफेदझक्क
पण स्याणी कामधेनु ने
देस रे गांव-गांव
घर-घर मांय
खूंटे बांध पाओला
इण चीज रो
म्हारे मन मैं
जाणै क्यूं
डबको है
खेत री
पालि़यां पे
उड़कता लुड़कता करसां री
माल़ी हालत रो भूगोल़
आकास मैं उड़तां-बांच
लेवणो घणो ई अबको है।