भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज री भारमली / कुंदन माली

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:16, 20 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन माली |संग्रह=जग रो लेखो / कुं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज री भारमली
साज-सिणगार री
हवेलियां सूं
पचासों कोस
दूरो रेईन
घरबार री खातिर
परवार री खातिर
हर बात री खातिर
रोज-रोज
भार तोके है

भूखे पेट
प्रेम भी
कणी ने
कितरी’क देर
ओपे है

आज री भारमली
आपणै घरबार
परवार
हर बात
हर भांत री
जिम्मेदारी थामै

 आज री भारमली
अस्तित्व रै
आंगणै में
नित दिन हरख अर
उम्मेदां रा
नूंवा बीज
रौपै है

अब
इतियास री
भारमली रैई
तो वीं नै
कुण टोके है ?