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कौन तुम / अनिल त्रिपाठी
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त्रयोदशी के चाँद सा
तुम्हारे जीवन में मैं
संयोग की तरह घटित हुआ ।
और समझ सका
कि अंकों के विषम अवकाश के बीच
भाषा के सीमान्त पर
फूल खिलाने का समय
आ गया है ।