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गुलाब जामुन / पवन करण

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हँसते समय तुम्हारे गालों में पड़ने वाले
गड्ढे देखकर मैं सोचता
कि एक बार इस गाल के गड्ढे में
और एक बार उस गाल के गड्ढे में
गुलाब जामुन खाई जाए रखकर

क्या करूँ गुलाब जामुन के प्रति
तुम्हारी दीवानगी देखकर
मुझे इसके अलावा कुछ सूझता ही नहीं
गुलाब जामुन तुम खातीं
मगर वह घुलता मेरे मुँह में

मिठाई की जिस दुकान के
गुलाब जामुन तुम्हें पसन्द आते
मुझे लगता जैसे वे वहाँ
बस तुम्हारे लिए ही बनते हैं
तुम्हारे पूछने पर दुकान
टोक भी देती अरे परसों ही तो
ताज़े बने थे तुम आई हीं नहीं

गुलाब जामुन खाने को लेकर
तुम्हारी ललक देखकर मुझे लगता
जैसे मैंने अपनी कविता की क़िताब
देते हुए तुम्हें तुमसे
प्रेम का इजहार किया अपने

कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन
कोई दोने में भरे गुलाब जामुन
बढ़ाते हुए तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे प्रति
अपना प्रेम प्रकट न कर दे